This Is Letter From Ganashyam Das Ji Birla To His Son
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चि. बसंत.....
धन का मौज-शौक में कभी उपयोग न करना, ऐसा नहीं की धन सदा रहेगा ही,
धन शक्ति है, इस शक्तिके नशे में किसी के साथ अन्याय हो जाना संभव है, इसका ध्यान रखो की
ऐसे नालायकों को धन कभी न देना, उनके हाथ में जाये उससे पहले ही जनकल्याण के
हम भाइयों ने अपार मेहनत से व्यापार को बढ़ाया है यह समझकर कि वे लोग धन का सदुपयोग
नित्य नियम से व्यायाम-योग करना। स्वास्थ्य ही सबसे बडी सम्पदा है।
भोजन को दवा समझकर खाना। स्वाद के वश होकर खाते मत रहना।
मैने देखा है की For Those Who want to translate use:
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घनश्यामदास जी बिरला का अपने बेटे के नाम लिखा हुवा पत्र इतिहास के सर्वश्रेष्ठ पत्रों में से एक माना जाता है ।
विश्व में जो दो सबसे सुप्रसिद्ध और आदर्श पत्र माने गए है उनमें से यह एक है ।
यह जो लिखता हूँ उसे बड़े होकर और बुढ़े होकर भी पढ़ना, अपने अनुभव की बात कहता हूँ।
संसार में मनुष्य जन्म दुर्लभ है और मनुष्य जन्म पाकर जिसने शरीर का दुरुपयोग किया, वह पशु है।
तुम्हारे पास धन ,तन्दुरुस्ती है, अच्छे साधन हैं उनको सेवा के लिए उपयोग किया, तब तो साधन सफल है
अन्यथा वे शैतान के औजार हैं। तुम इन बातों को ध्य़ान में रखना।
इसलिये जितने दिन पास में है उसका उपयोग सेवा के लिए करो, अपने ऊपर कम से कम खर्च करो,
बाकी जनकल्याण और दुखियों क दुख दूर करने में व्यय करो।
अपने धन के ऊपयोग से किसी पर अन्याय ना हो।अपनी संतान के लिए भी यही उपदेश छोड़कर जाओ।
यदि बच्चे मौज-शौक, ऐश-आराम वाले होंगे तो पाप करेंगे और हमारे व्यापार को चौपट करेंगे।
किसी काम में लगा देना या गरिबों में बाँट देना। तुम उसे अपने मन के अंधेपन से संतान के मोह में स्वार्थ के लिए
ऊपयोग नहीं कर सकते।
करेंगे। भगवान को कभी न भूलना, वह अच्छी बुद्धि देता है, इन्द्रियों पर काबू रखना, वरना यह तुम्हे डुबो देगी।
स्वास्थ्य से कार्य में कुशलता आती है, कुशलता से कार्यसिद्धि और कार्यसिद्धि से समृद्धि आती है।
सुख-समृद्धि के लिये स्वास्थ्य ही पहली शर्त है।
जीने के लिए खाना हैं, न कि खाने के लिए जीना।
स्वास्थ्य सम्पदा से रहित होनेपर करोड़ों-अरबों के स्वामी भी
कैसे दीन-हीन बनकर रह जाते हैं।
स्वास्थ्य के अभाव में सुख-साधनों का कोई मूल्य नहीं।
इस सम्पदा की रक्षा हर उपाय से करना।
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